History of Sindhu Ghati Sabhyata in Hindi : Sindhu Ghati Sabhyata in Hindi Pdf
सिंधु घाटी सभ्यता (Sindhu Ghati Sabhyata In Hindi)
सिंधु घाटी सभ्यता (अंग्रेज़ी : Indus Valley Civilization ) - सिन्धु घाटी सभ्यता विश्व की प्राचीन नदी घाटी सभ्यताओं में से एक प्रमुख सभ्यता थी । सिंधु घाटी सभ्यता का उदय सिंधु नदी की घाटी में होने के कारण इसे सिंधु घाटी सभ्यता कहते है। सिंधु घाटी सभ्यता की सर्वमान्य तिथि को रेडियो कार्बन c14 जैसी अनूठी पद्धति का उपयोग करके 2350 ईसा पूर्व से 1750 ईसा पूर्व माना गया है।
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सिंधु घाटी सभ्यता को हड़प्पा सभ्यता क्यों कहा जाता है?
इसके प्रथम उत्खनित एवं विकसित केन्द्र हड़प्पा के नाम पर हड़प्पा सभ्यता , आद्यैतिहासिक कालीन होने के कारण आद्यैतिहासिक भारतीय और सिंधु - सरस्वती सभ्यता के नाम से भी जानी जाती है ।
सिंधु घाटी सभ्यता का खोज (Sindhu Ghati Sabhyata Ki Khoj Kisne Ki)
' रायबहादुर दयाराम साहनी ' को सिंधु घाटी सभ्यता की खोज का श्रेय जाता है । उन्होंने ही ' सर जॉन मार्शल ' पुरातत्त्व सर्वेक्षण विभाग के महानिदेशक के निर्देशन में 1921 में इस स्थान की खुदाई करवायी । लगभग एक वर्ष बाद 1922 में ' श्री राखल दास बनर्जी के नेतृत्व में पाकिस्तान के सिंध प्रान्त के ' लरकाना ' ज़िले के मोहनजोदाड़ो में स्थित एक बौद्ध स्तूप की खुदाई के समय एक और स्थान का पता चला ।
सिंधु घाटी सभ्यता की खोज
सिंधु घाटी सभ्यता कहाँ पर है? (Sindhu Ghati Ki Sabhyata In Hindi)
अब तक सिंधु घाटी सभ्यता के अवशेष पाकिस्तान और भारत के पंजाब , बलूचिस्तान , गुजरात , राजस्थान , पश्चिमी उत्तर प्रदेश , सिंध , हरियाणा , जम्मू - कश्मीर के भागों में पाये जा चुके हैं ।
सिंधु घाटी सभ्यता का फैलाव उत्तर में ' जम्मू ' के ' मांदा ' से लेकर दक्षिण में नर्मदा के मुहाने ' भगतराव ' तक और पश्चिमी में ' मकरान ' समुद्र तट पर ' सुत्कागेनडोर ' से लेकर पूर्व में पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मेरठ तक है ।
इस सभ्यता का सर्वाधिक पश्चिमी पुरास्थल ' सुत्कागेनडोर ' , पूर्वी पुरास्थल ' आलमगीर ' , उत्तरी पुरास्थल ' मांडा ' तथा दक्षिणी पुरास्थल ' दायमाबाद ' है । लगभग त्रिभुजाकार वाला यह भाग कुल क़रीब 12,99,600 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है । सिन्धु सभ्यता का विस्तार का पूर्व से पश्चिमी तक 1600 किलोमीटर तथा उत्तर से दक्षिण तक 1400 किलोमीटर था । इस प्रकार सिंधु सभ्यता समकालीन मिस्र या ' सुमेरियन सभ्यता ' से अधिक विस्तृत क्षेत्र में फैली थी ।
सिन्धु सभ्यता के प्रमुख स्थल (Prominent Places of the Indus Valley Civilization)
• हड़प्पा सभ्यता : हड़प्पा सभ्ययत 6000-2600 ईसा पूर्व की एक सुव्यवस्थित नगरीय सभ्यता थी। मोहनजोदड़ो , मेहरगढ़ और लोथल की ही शृंखला में हड़प्पा में भी पुर्रात्तव उत्खनन किया गया। यहाँ मिस्र और मैसोपोटामिया जैसी ही प्राचीन सभ्यता के अवशेष मिले है। इसकी खोज 1920 में की गई। वर्तमान में यह पाकिस्तान के पंजाब प्रान्त में स्थित है। सन् 1857 में लाहौर मुल्तान रेलमार्ग बनाने में हड़प्पा नगर की ईटों का इस्तेमाल किया गया जिससे इसे बहुत नुक़सान पहुंचा।
• मोहनजोदाड़ो सभ्यता : मोहन जोदड़ो , जिसका कि अर्थ मुर्दो का टीला है, 2600 ईसा पूर्व की एक सुव्यवस्थित नगरीय सभ्यता थी । हड़प्पा , मेहरगढ़ और लोथल की ही शृंखला में मोहन जोदड़ो में भी पुर्रात्तव उत्खनन किया गया । यहाँ मिस्र और मैसोपोटामिया जैसी ही प्राचीन सभ्यता के अवशेष मिले है ।
• लोथल : यह गुजरात के अहमदाबाद जिले में ' भोगावा नदी ' के किनारे ' सरगवाला ' नामक ग्राम के समीप स्थित है । खुदाई 1954-55 ई . में ' रंगनाथ राव ' के नेतृत्व में की गई ।
• रोपड़ : पंजाब प्रदेश के ' रोपड़ जिले में सतलुज नदी के बांए तट पर स्थित है । यहाँ स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् सर्वप्रथम उत्खनन किया गया था । इसका आधुनिक नाम ' रूप नगर ' था । 1950 में इसकी खोज ' बी.बी.लाल ' ने की थी ।
• कालीबंगा : यह स्थल राजस्थान के गंगानगर ज़िले में घग्घर नदी के बाएं तट पर स्थित है । खुदाई 1953 में ' बी.बी. लाल ' एवं ' बी . के . थापड़ ' द्वारा करायी गयी । यहाँ पर प्राक् हड़प्पा एवं हड़प्पाकालीन संस्कृति के अवशेष मिले हैं ।
• सूरकोटदा : यह स्थल गुजरात के कच्छ जिले में स्थित है । इसकी खोज 1964 में ' जगपति जोशी ' ने की थी इस स्थल से ' सिंधु सभ्यता के पतन ' के अवशेष परिलक्षित होते हैं ।
• आलमगीरपुर ( मेरठ ) : पश्चिम उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले में यमुना की सहायक हिण्डन नदी पर स्थित इस पुरास्थल की खोज 1958 में ' यज्ञ दत्त शर्मा ' द्वारा की गयी ।
• रंगपुर ( गुजरात ) : गुजरात के काठियावाड़ प्राय : द्वीप में भादर नदी के समीप स्थित इस स्थल की खुदाई 1953-54 में ' ए . रंगनाथ राव ' द्वारा की गई । यहाँ पर पूर्व हडप्पा कालीन सस्कृति के अवशेष मिले हैं । यहाँ मिले कच्ची ईटों के दुर्ग , नालियां , मृदभांड , बांट , पत्थर के फलक आदि महत्त्वपूर्ण हैं । यहाँ धान की भूसी के ढेर मिले हैं । यहाँ उत्तरोत्तर हड़प्पा संस्कृति के साक्ष्य मिलते हैं ।
• बणावली ( हरियाणा ) : हरियाणा के हिसार ज़िले में स्थित दो सांस्कृतिक अवस्थाओं के अवषेश मिले हैं । हड़प्पा पूर्व एवं हड़प्पाकालीन इस स्थल की खुदाई 1973-74 ई . में ' रवीन्द्र सिंह विष्ट ' के नेतृत्व में की गयी ।
• अलीमुराद ( सिंध प्रांत ) : सिंध प्रांत में स्थित इस नगर से कुआँ , मिट्टी के बर्तन , कार्निलियन के मनके एवं पत्थरों से निर्मित एक विशाल दुर्ग के अवशेष मिले हैं । इसके अतिरिक्त इस स्थल से बैल की लघु मृण्मूर्ति एवं कांसे की कुल्हाड़ी भी मिली है ।
• सुत्कागेनडोर ( दक्षिण बलूचिस्तान ) : यह स्थल दक्षिण बलूचिस्तान में दाश्त नदी के किनारे स्थित है ।
● हड़प्पाकालीन सभ्यता से सम्बन्धित कुछ नवीन क्षेत्र
खर्वी ( अहमदाबाद ) कुनुतासी ( गुजरात ) बालाकोट ( बलूचिस्तान ) अल्लाहदीनों ( अरब महासागर ) भगवानपुरा ( हरियाणा ) देसलपुर ( गुजरात ) रोजदी ( गुजरात )
सिंधु घाटी सभ्यता का मुख्य व्यवसाय क्या था?
सिन्धु घाटी सभ्यता के लोग गेंहू , जौ , राई , मटर , ज्वार आदि अनाज पैदा करते थे । वे दो किस्म की गेंहू पैदा करते थे । बनावली में मिला जौ उन्नत किस्म का है । इसके अलावा वे तिल और सरसों भी उपजाते थे । सबसे पहले कपास भी यहीं पैदा की गई । इसी के नाम पर यूनान के लोग इस सिन्डन ( Sindon ) कहने लगे । हड़प्पा योंतो एक कृषि प्रधान संस्कृति थी पर यहां के लोग पशुपालन भी करते थे । बैल - गाय , भैंस , बकरी , भेड़ और सूअर पाला जाता था । हड़प्पाई लोगों को हाथी तथा गैंडे का ज्ञान था ।
सिंधु घाटी सभ्यता का आर्थिक जीवन
कृषि एवं पशुपालन : - आज के मुकाबले सिन्धु प्रदेश पूर्व में बहुत उपजाऊ था । सिन्धु की उर्वरता का एक कारण सिन्धु नदी से प्रतिवर्ष आने वाली बाढ़ भी थी । गाँव की रक्षा के लिए खड़ी पकी ईंट की दीवार इंगित करती है बाढ़ हर साल आती थी । यहां के लोग बाढ़ के उतर जाने के बाद नवंबर के महीने में बाढ़ वाले मैदानों में बीज बो देते थे और अगली बाढ़ के आने से पहले अप्रैल के महीने में गेहूँ और जौ की फ़सल काट लेते थे । यहाँ कोई फावड़ा या फाल तो नहीं मिला है लेकिन कालीबंगां की प्राक् - हड़प्पा सभ्यता के जो फॅट ( हलरेखा ) मिले हैं उनसे आभास होता है कि राजस्थान में इस काल में हल जोते जाते थे ।
• सिंधु घाटी सभ्यता का व्यापार : - यहां के लोग आपस में पत्थर , धातु शल्क ( हड्डी ) आदि का व्यापार करते थे । एक बड़े भूभाग में ढेर सारी सील ( मृन्मुद्रा ) , एकरूप लिपि और मानकीकृत माप तौल के प्रमाण मिले हैं । वे चक्के से परिचित थे और संभवतः आजकल के इक्के ( रथ ) जैसा कोई वाहन प्रयोग करते थे । ये अफ़ग़ानिस्तान और ईरान ( फ़ारस ) से व्यापार करते थे । उन्होंने उत्तरी अफ़गानिस्तान में एक वाणिज्यिक उपनिवेश स्थापित किया जिससे उन्हें व्यापार में सहूलियत होती थी । बहुत सी हड़प्पाई सील मेसोपोटामिया में मिली हैं जिनसे लगता है कि मेसोपोटामिया से भी उनका व्यापार सम्बंध था । मेसोपोटामिया के अभिलेखों में मेलुहा के साथ व्यापार के प्रमाण मिले हैं साथ ही दो मध्यवर्ती व्यापार केन्द्रों का भी उल्लेख मिलता है - दलमुन और माकन । दिलमुन की पहचान शायद फ़ारस की खाड़ी के बहरीन के की जा सकती है ।
• सिंधु घाटी सभ्यता के उद्यो-धंधे : - यहाँ के नगरों में अनेक व्यवसाय - धन्धे प्रचलित थे । मिट्टी के बर्तन बनाने में ये लोग बहुत कुशल थे । मिट्टी के बर्तनों पर काले रंग से भिन्न - भिन्न प्रकार के चित्र बनाये जाते थे । कपड़ा बनाने का व्यवसाय उन्नत अवस्था में था । उसका विदेशों में भी निर्यात होता था । जौहरी का काम भी उन्नत अवस्था में था । मनके और ताबीज बनाने का कार्य भी लोकप्रिय था , अभी तक लोहे की कोई वस्तु नहीं मिली है । अतः सिद्ध होता है कि इन्हें लोहे का ज्ञान नहीं था ।
सिंधु घाटी सभ्यता के लोग किसकी पूजा करते थे?
सिंधु सभ्यता में मातृ शक्ति की पूजा सार्वभौमिक थी। यहाँ से अधिकांश महिला मूर्तियाँ प्राप्त हुई हैं। हड़प्पा की एक मुहर पर महिला के गर्भ से पौधा निकलता हुआ दिखाया गया है। यह शायद पृथ्वी देवी की एक प्रतिमा है।
हड़प्पा के लोग एक ईश्वरीय शक्ति में विश्वास करते थे। इसलिए वे कई देवताओं की पूजा करते थे। जिनमें से कुछ निम्नलिखित है।
शिव की पूजा : - मोहनजोदड़ों से मैके को एक मुहर प्राप्त हुई जिस पर अंकित देवता को मार्शल ने शिव का आदि रुप माना आज भी हमारे धर्म में शिव की सर्वाधिक महत्ता है ।
मातृ देवी की पूजा : - सैन्धव संस्कृति से सर्वाधिक संख्या में नारी मृण्य मूर्तियां मिलने से मातृ देवी की पूजा का पता चलता है । यहाँ के लोग मातृ देवी की पूजा पृथ्वी की उर्वरा शक्ति के रूप में करते थे ( हड़प्पा से प्राप्त मुहर के आधार
मूर्ति पूजा : - हड़प्पा संस्कृति के समय से मूर्ति पूजा प्रारम्भ हो गई हड़प्पा से कुछ लिंग आकृतियां प्राप्त हुई है इसी प्रकार कुछ दक्षिण की मूर्तियों में धुयें के निशान बने हुए हैं जिसके आधार पर यहाँ मूर्ति पूजा का अनुमान लगाया जाता है । हड़प्पा काल के बाद उत्तर वैदिक युग में मूर्ति पूजा के प्रारम्भ का संकेत मिलता है हलाँकि मूर्ति पूजा गुप्त काल से प्रचलित हुई जब पहली बार मन्दिरों का निर्माण प्रारम्भ हुआ ।
जल पूजा : - मोहनजोदड़ों से प्राप्त स्नानागार के आधार पर।
सूर्य पूजा :- मोहनजोदड़ों से प्राप्त स्वास्तिक प्रतीकों के आधार पर । स्वास्तिक प्रतीक का सम्बन्ध सूर्य पूजा से लगाया जाता है ।
नाग पूजा : मुहरों पर नागों के अंकन के आधार पर ।
वृक्ष पूजा : - मुहरों पर कई तरह के वृक्षों जैसे - पीपल , केला , नीम आदि का अंकन मिलता है । इससे इनके धार्मिक महत्ता का पता चलता है ।
Sindhu Ghati Sabhyata Question in Hindi -FAQ
सिन्धु घाटी सभ्यता से सम्बंधित महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर hindi मे प्रस्तुत किये गये हैं
उत्तर- सिंधु घाटी सभ्यता का पतन नगर लोथल था।
2. सिंधु घाटी सभ्यता में कितने नगर थे?
उत्तर- प्रथम बार नगरों के उदय के कारण इसे प्रथम नगरीकरण भी कहा जाता है। प्रथम बार कांस्य के प्रयोग के कारण इसे कांस्य सभ्यता भी कहा जाता है। सिन्धु घाटी सभ्यता के 1400 केन्द्रों को खोजा जा सका है जिसमें से 925 केन्द्र भारत में है।
3. सिंधु घाटी सभ्यता की लिपि क्या थी?
उत्तर- सिंधु घाटी की सभ्यता से सम्बन्धित छोटे-छोटे संकेतों के समूह को सिन्धु लिपि (Indus script) कहते हैं। इसे सिन्धु-सरस्वती लिपि और हड़प्पा लिपि भी कहते हैं।
4. सिंधु घाटी सभ्यता कितनी पुरानी है?
उत्तर- वैज्ञानिकों ने सिंधु घाटी सभ्यता को लेकर ऐसे तथ्य सामने रखे हैं, जिनसे पता चलता है कि यह सभ्यता 5,500 नहीं बल्कि 8,000 साल पुरानी है। इस हिसाब से सिंधु घाटी मिस्र और मेसोपोटामिया की सभ्यता से भी पुरानी सभ्यता है।
5. सिंधु सभ्यता कितनी वर्ष पूर्व मानी जाती है?
उत्तर- रेडियो कार्बन c14 जैसी विलक्षण-पद्धति के द्वारा सिंधु घाटी सभ्यता की सर्वमान्य तिथि 2350 ई पू से 1750 ई पूर्व मानी गई है।
6. सिंधु घाटी सभ्यता के लोगों का मुख्य व्यवसाय क्या था?
उत्तर- सिंधु घाटी के लोगो का मुख्य व्यवसाय कृषि तथा पशुपालन था।
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